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Was Ravana Ever Defeated Before Rama? A Look Through the Valmiki Ramayana

Ravana, the mighty king of Lanka and one of the most iconic antagonists in Indian epics, is often portrayed as invincible—unbeaten in battle, feared by gods and demons alike. In the first six books (Kandas) of the Valmiki Ramayana , this reputation holds true. But if we explore the entirety of Valmiki’s Ramayana , including the Uttara Kanda , a different picture begins to emerge—one where Ravana indeed faced defeats at the hands of other great warriors. Let us explore the truth behind Ravana's military record as portrayed in the seven Kandas of the Valmiki Ramayana . Unbeaten Before Rama: The Testimony of Vibhishana and Rama In the Yuddha Kanda , Ravana's own brother Vibhishana acknowledges that Ravana had never been defeated prior to his battle with Rama : “The demon, who had never been conquered before in battles, by even all the gods combined or by Indra himself, has been conquered, on confronting you in the battlefield, as the sea breaks up, on reaching the shore.” ...

SHRI MAHISHASURA MARDINI STOTRAM

 अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते

गिरिवरविन्ध्यशिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 1 ॥

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि कल्मषमोषिणि घोररते । [किल्बिष-, घोष-]
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 2 ॥

अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 3 ॥

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते [-चण्ड]
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 4 ॥

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचारधुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 5 ॥

अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभयदायकरे
त्रिभुवन मस्तक शूलविरोधि शिरोधिकृतामल शूलकरे ।
दुमिदुमितामर दुन्दुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 6 ॥

अयि निजहुङ्कृतिमात्र निराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिव शिव शुम्भ निशुम्भ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 7 ॥

धनुरनुसङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनक पिशङ्ग पृषत्कनिषङ्गरसद्भट शृङ्ग हतावटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 8 ॥

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिन्धिमित ध्वनि धीर मृदङ्ग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 9 ॥

जय जय जप्य जये जय शब्दपरस्तुति तत्पर विश्वनुते
भण भण भिञ्जिमि भिङ्कृतनूपुर सिञ्जितमोहित भूतपते । [झ-, झिं-]
नटितनटार्ध नटीनटनायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 10 ॥

अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कान्तियुते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते ।
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 11 ॥

सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक भिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते ।
सितकृत फुल्लसमुल्लसितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 12 ॥

अविरलगण्डगलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गज राजपते
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहनमन्मथ राजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 13 ॥

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलय क्रमकेलिचलत्कलहंसकुले ।
अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 14 ॥

करमुरलीरव वीजित कूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगुणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 15 ॥

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे ।
जितकनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 16 ॥

विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधि समाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 17 ॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 18 ॥

कनकलसत्कल सिन्धुजलैरनुसिञ्चिनुते गुणरङ्गभुवं
भजति स किं न शचीकुचकुम्भ तटीपरिरम्भ सुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 19 ॥

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 20 ॥

अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुभितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरु ते [मे]
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ 21 ॥

इति श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् ॥

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